05 सितंबर, 2023

श्रीमद्भागवतम् अध्ययन : > प्रथम स्कंध, प्रथम अध्याय, श्लोक संख्या -(4 से 11)

 पिछले तीन श्लोक भागवत के मंगलाचरण थें अब मुख्य विषय प्रस्तुत हो रहा है जिसके कुछ मुख्य बिंदु निमनलिखित हैं। 👇

1) भगवान की प्राप्ति की इच्छा के बजाय इंद्रिय तृप्ति की कामना से कर्म होना यह कर्ता के लिए बंधन का कारण है। 

2) जिस प्रकार वृक्ष की जड़ में जल देने से वृक्ष से अलग हुई टहनियों को पोषण नहीं मिल सकता उसी प्रकार जब कोई जीव भगवान से रहित है अर्थात उनसे जुड़ा नहीं है, उनकी सेवा से रहित है तो उसके जीवन में कभी संतुष्टि और शांति नही मिल सकती और यदि भौतिक वस्तुओं से उसे कोई संतुष्टि प्रदान करना चाहे तो ये समय का अपव्यय मात्र है। 

3) भगवान के नामों का सामूहिक कीर्तन तथा श्रीमद भागवत का अध्ययन ही इस युग में जीवों के हृदय को तृप्ति और शांति प्रदान कर सकती है। 

4) जो व्यासदेव जी के दृष्टिकोण को, उनके उद्देश्य को सही सही प्रस्तुत कर सके, अपनी मनमानी व्याख्या की बजाय केवल उनकी ही बात प्रस्तुत करे तथा पूर्ववर्ती आचार्यों का अनुगमन करे ऐसे प्रमाणिक प्रतिनिधि गोस्वामी समझने योग्य हैं। 

5) व्यासदेव के प्रमाणिक प्रतिनिधि को चार पापों(अवैध स्त्री संबंध, पशु वध, मादक द्रव्य, सभी प्रकार की द्युत क्रीड़ा)से मुक्त रहना चाहिए। समस्त शास्त्रों, वेदों और पुराणों में पारंगत होना चाहिए। षडदर्शन की समस्त प्रणालियों से उसे अवगत होना चाहिए ताकि अन्य समस्त प्रणालियों में भागवत की आस्तिकता वाद को प्रस्तुत कर सकें क्योंकि दर्शन की समस्त प्रणालियों में समस्त कारणों के कारण अर्थात श्री कृष्ण का वर्णन कहीं नहीं किया गया है। 

6) गुरु की आज्ञा का पालन अत्यंत विनीत भाव से करते हुए तथा उनके अनूकूल रहकर ही जीव को जीवन की अभीष्ट सिद्धि अर्थात भगवतप्राप्ति सहज ही हो सकती है अन्यथा इस मार्ग पर केवल बाधा ही बाधा उत्पन्न होगी। 

7) इस कलयुग में विभिन्न प्रकार के पंथ और संस्थाएँ केवल इंद्रिय तृप्ति के उद्धेश्य से अपना बाजार चला रहें हैं और ढीले ढाले लोग जो अध्यात्म को बड़ी सरल वस्तु मानते हैं ,ऐसे लोग उनके आडंबर में फँस कर अपना जीवन बर्बाद करते हैं । धर्म की आड़ में पापाचरण को ही बढ़ावा मिलता है और जीवन में कभी शांति नहीं मिलती। 

8) लोग वर्णाश्रम के विधि विधानों का पालन करने में अपने आप को अयोग्य समझते हैं और आध्यात्म में कोई रुचि नहीं दिखातें। इसलिए शौनकादि मुनिजन सूत जी से समस्त शास्त्रों का सार प्रस्तुत करने के लिए प्रार्थना कर रहें हैं ताकि जन सामान्य उसे बड़ी सहजता से समझ सकें। 

**आत्मा को भौतिक वस्तुओं से तृप्ति नहीं मिल सकती क्योंकि वह भौतिक तत्वों से निर्मित नहीं है वह स्वभाविक रूप से आध्यात्मिक है। समस्त शास्त्रों का निर्माण इस आत्मा की तृप्ति हेतु ही हुआ है । विभिन्न शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के जीवों के लिए विभिन्न प्रकार की बातों और विधिविधानों का वर्णन है किंतु कलयुग के जीवों की असमर्थता को ध्यान में रखतें हुए, उनके कल्याणार्थ नैमिषारण्य के मुनियों ने सूत जी के समक्ष अपने प्रश्न रखें। 


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