शास्त्रों में उल्लेख है कि मांस खाने वालों को अपने जीवन में मारे गए जानवरों के कारण नरक की प्राप्ति होती है। जानवरों को उपयुक्त शरीर मिलते हैं जिनका उपयोग वे अपने हत्यारे पर हमला करने के लिए कर सकते हैं और इस प्रकार उससे बदला ले सकते हैं। इसमें कुछ संदेह पैदा हो सकते हैं कि -- ये बेचारे जानवर जो पहले से ही मारे जाने से पीड़ित थे, उन्हें नरक में शरीर स्वीकार करने और वहां उन्हें मारने वाले आदमी को दंडित करने के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है? कई लोगों के लिए यह पीड़ित को दोबारा पीड़ित करने जैसा लग सकता है।किन्तु यह श्रीमद्भागवत (1.17.22) में धर्म के कथनानुसार होता है: "आप धर्म के सत्य को जानते हैं, और आप इस सिद्धांत के अनुसार बोल रहे हैं कि अधार्मिक कृत्यों के अपराधी के लिए वांछित गन्तव्य (गति) वही है, जो उस अपराधी की पहचान करनेवाले के लिए है।” अतः आप साक्षात् धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हैं।
एक तरह से देखा जाये तो जब कोई हमें पीड़ा पहुंचाता है तब बदला लेना और न्याय की इच्छा रखना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, लेकिन यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें इसके लिए क्या कीमत चुकानी पड़ती है। यदि कोई यह देखना चाहे कि कोई अपराधी जेल में किस प्रकार कष्ट भोग रहा है तो उसे भी वहीं रुकना पड़ेगा। उसी प्रकार, जिसने हमारे साथ अन्याय किया है, उसे दंडित करने के लिए हमें भी उसी स्थान पर रहना होगा जहां वह है, ताकि उससे आमने-सामने मिल सकें और वांछित दंड दे सकें।
जब मांस खाने वाले द्वारा किसी जानवर को मार दिया जाता है, तो वह अक्सर अपने कष्ट का बदला लेने की इच्छा रखता है। जो जानवर ऐसी इच्छा रखता है उसे नरक के द्वार पर शरीर धारण करने और पापी के वहां से गुजरने पर अपना बदला लेने का अवसर मिलता है। हालाँकि समस्या यह है कि बदला लेने के लिए जानवर को भी पापी की प्रतीक्षा में वहीं रहना पड़ता है।
उसी प्रकार, जिसने हमारे साथ कुछ गलत किया है, उसे न्याय दिलाने के लिए हमें भी अपना अगला जन्म उसी स्थान पर लेना होगा जहां यह पापी प्रकट हुआ है, ताकि हम उसकी पीड़ा देख सकें, या स्वयं उसे पीड़ा पहुंचा सकें। कभी-कभी जो व्यक्ति किसी और से बदला लेना चाहता है, वह उसका बेटा या यहां तक कि उसकी पत्नी बन जाता है, ये एक ऐसी स्थिति है जहां कोई व्यक्ति वास्तव में अधिकतम पीड़ा पहुंचा सकता है। हालाँकि, इसके लिए व्यक्ति को उसके करीब रहना होगा, उसी स्थान पर जहाँ वह जाता है।
श्रीमद्भागवत का यही अर्थ है कि "अधार्मिक कृत्यों के अपराधी के लिए जो गंतव्य है, वह उसके लिए भी है जो अपराधी की पहचान करता है।"
जो कोई हमारे साथ गलत करता है, उसे वैसे भी इसके लिए कार्मिक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ेगा, लेकिन अपने अंदर बदला लेने की इच्छा लेकर हम अपने लिए और मुश्किलें पैदा करते हैं, जिससे हम जिस व्यक्ति से द्वेष करते हैं, उसके समीप ही रहते हैं। एक बात और कि अगले जन्म में हमारे द्वारा पीड़ित होने के बाद, वह व्यक्ति बदला भी लेना चाहेगा, और इस प्रकार अगले जीवन में भूमिकाएँ फिर से उलट जाएंगी। इस प्रकार आत्माएँ इस भौतिक संसार में बहुत लंबे समय तक रहती हैं और एक-दूसरे को पीड़ा पहुँचाती हैं।
तो इसे जाने देना ही बेहतर उपाय है। हमलावर को उसके कार्यों के लिए वैसे भी दंडित किया ही जाएगा, चाहे वह सांसारिक अधिकारियों द्वारा या कर्म के नियमों द्वारा हो। किसी भी स्थिति में, उसे अपने कर्मों की प्रतिक्रिया भुगतनी ही पड़ेगी, लेकिन यह हमें उन लोगों में से ही एक होने से बचाएगा जो गलत हैं। दूसरे शब्दों में, क्षमा आवश्यक रूप से हमलावर को सजा से मुक्त नहीं करती है, परन्तु यह हमें ऐसा करने वालों में से एक होने से मुक्त करती है। यह गलत बनने और गलत होने के चक्र को तोड़ती है।
Right, very nice prabhu g🙏 Hari bol🙏
जवाब देंहटाएंबदला लेने की भावना ही हमें संसार चक्र में बांधे रखती है और इस चक्र से निकल ही नहीं सकते जबतक कि संसार के इन कर्मबंधन से मुक्त नहीं होते।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी व्याख्या की है प्रभुजी! सादर प्रणाम
Revenge or avenge both torture the person itself
जवाब देंहटाएंRevenge and avenge both torture the person itself
जवाब देंहटाएंVery meaningful write up
हरिबोल 100 प्रतिशत सत्य क्षमा करना और भगवान के ऊपर छोड़ देना हमें यहीं करना है बहुत ही सरल और सुन्दर ढंग से समझाने के लिए कोटि - कोटि धन्यवाद हरे कृष्णा
जवाब देंहटाएंHari bol dandvat pranam
जवाब देंहटाएंहरे कृष्ण 🙏
जवाब देंहटाएंप्रणाम प्रभु जी 🙏
Jay Shri Shyam
जवाब देंहटाएंहरि बोल 🙏🙏भव बंधन से मुक्त होने का एक मात्र उपाय क्षमा करना तथा भगवान के ऊपर छोड़ देना ही एक मात्र उपाय है। बहुत ही सुन्दर एवं सरल तरीके आपने समझाया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहरे कृष्णा प्रभु जी प्रणाम 🙏🙏
Hari bol
जवाब देंहटाएंHari bol
जवाब देंहटाएंIt's fact prabhuji,,I shall work on it
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