19 अगस्त, 2023

OMG-2 Movie - भगवान शिव और श्री कृष्ण के ज्ञान का अपमान ?


सिनेमा मनोरंजन का माध्यम है लेकिन उसी के साथ-साथ यह लोगों के जीवन पर भी बहुत गहरा प्रभाव डालता है ।लेकिन कहीं फिल्म इंडस्ट्री के द्वारा मनोरंजन के नाम पर हमारे साथ धोखा नहीं किया जा रहा ? जी हाँ आज  हमारी युवा पीढ़ी इसी  इंडस्ट्री के बहुत ही गलत आदतों का शिकार बन चुकी है फैशन के नाम पर- ड्रग एडिक्शन, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स आम होता जा रहा है जो फिल्म इंडस्ट्री की ही देन है और फिल्म इंडस्ट्री यह बहुत ही अच्छी तरह जानती है कि उनके प्रोडक्ट को किस तरह से पैकेजिंग करके पहुंचना है। सनातन संस्कृति की पैकेजिंग करके उसके अंदर वह अब अपना एजेंडा परोस रही है और लगातार एक के बाद एक हमारी संस्कृति के बारे में गलत तथ्य बता रही है। भोली भाली जनता को गुमराह किया जा रहा है और इसी कड़ी में है अक्षय कुमार की फिल्म OMG - 2, जो सनातन संस्कृति का इस्तेमाल कर हस्तमैथुन को नॉर्मल बता रही है। पाश्चात्य जगत का एक भयावह एजेंडा फैला रही है और दिखाया इस तरह से गया है कि यह कितना जरूरी है वो भी इतने  स्वाभाविक तरीके से जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो।

                    फिल्म एक वीडियो से शुरू होती है जो अचानक से इंटरनेट फैलता है और एक बड़े स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा वहां से सस्पेंड  हो जाता है वीडियो में जो कुछ भी है उसका पूरा आरोप आता है उसके पिताजी पर जो महादेव शिव जी के मंदिर में काम करते हैं- कि उनका बेटा ऐसा कैसे कर सकता है। अब गलती करी है तो सजा भी मिलेगी और सजा मिलने के कारण लड़का डिप्ट्रेस होता है रेल की पटरी पर अपना जीवन समाप्त करना चाहता है लेकिन फिर होता है चमत्कार क्योंकि लंबी चौड़ी ट्रेन भी इस लड़के  का कुछ नहीं बिगाड़ पाती कैसे ? क्योंकि उसका हाथ पकड़ के पीछे खींचने वाला कोई मनुष्य नहीं बल्कि स्वयं महादेव हैं। फिर शुरू होती है एक ऐसी जंग जिसमें तलवार और बंदूक आदि कुछ नहीं चलता क्योंकि हार जीत का फैसला करेगी जज साहब की कलम। तो फिल्म देख कर यह समझ नहीं आता कि भगवान शिव ने यह कैसा रास्ता ढूंढा अपने भक्त को इन्साफ दिलाने का ? यह सब सिनेमा क्या एंटरटेनमेंट के लिए बनाया गया है क्या ये छुपकर हमारे आपके सबके दिमाग और इससे भी आगे हमारे और आपके बच्चों के जीवन से क्या नहीं खेल रहे?  एक ऐसा सिनेमा बनाया गया है जो थिएटर से बाहर तक आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। आपके दिमाग में यह चलेगा कि एक बच्चे ने हस्तमैथुन ही तो किया है और उसकी वजह से उसे स्कूल से बाहर निकाल दिया गया। जिस वजह से उसने आत्महत्या करने का प्रयास किया। छोटी सी तो बात थी क्या हुआ ? तो यह मूवी हस्तमैथुन को कॉमन और स्वाभाविक है बोलकर प्रचार करना चाह रही है बड़े ही स्मार्टली यह फिल्म बनाई गई है

लेकिन सच कहें तो जितना नुकसान मुगलों और अंग्रेजों ने हमारे देश और संस्कृति का नहीं किया उससे ज्यादा नुकसान इस फिल्म से हो रहा है और इसीलिए आज हम इन  बिंदुओं पर चर्चा करेंगे -

1. फिल्म में खजुराहो के मंदिर और हमारे शास्त्रों को आधार बनाकर व्यभिचार को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं उसका हम खंडन करेंगे 

2 . वीर्य  की रक्षा और ब्रह्मचर्य की रक्षा का क्या महत्व है ?

 3 .वीर्य के नाश से होने वाले दुष्परिणाम और उसका समाधान। 

खजुराहो 

        पूरी फिल्म हस्तमैथुन को ना केवल जस्टिफाई करती है बल्कि  ग्लोरिफ़ाई करती है। लेकिन जब तथ्य दिखाने की बात आती है तो दो-तीन चीजों को बार-बार घुमा फिरा कर  दिखाए जा रहे हैं। क्योंकि जिन बातों को यह प्रमोट कर रहे हैं शास्त्रों में कहीं कोई ऐसा संदर्भ इन्हें मिलेंगे ही नहीं। और कौन सी बातें ? खजुराहो की मूर्तियां, कामसूत्र और पंचतंत्र की कहानियों की किताबों का रेफरेंस। तो जब बात खजुराहो की मूर्तियों की है तो वह मंदिर क्यों बनाए गए? उसका इतिहास क्या है? एक बार एक युवा बच्चे ने अपने दादा जी से पूछा कि हमारे मंदिरों में कुछ स्थानों पर ऐसा  चित्रण मिलता है तो उसका क्या अर्थ है? तो दादाजी ने कहा कि बेटा हमारी सभ्यता में आर्किटेक्ट और मॉन्यूमेंट के साथ हमें संस्कृति और फिलॉसफी सिखाते थे। प्राचीन काल में वैदिक भारत में अपने दर्शन या फिलोसोफी को समझाने के लिए कलाकृतियों का प्रयोग किया जाता था। ऐसे ही खजुराहो की मूर्तियां बनाते हुए वह यह संदेश देना चाहते थे कि यदि आपको मंदिर के अंदर भगवान को पाना है तो आपको बाहर का, इस शरीर का, इस दुनिया का आकर्षण यानी वासना यानी भोग छोड़ना होगा। ये  इसलिए नहीं है कि   आप सीखें  कि यह कैसे करना है और बस यही जीवन का लक्ष्य है; नहीं बल्कि यह उद्देश्य था कि जब तक हाथ इस स्तर से ऊपर नहीं उठेंगे आप भगवान को नहीं पा सकते।


दक्षिण में बालाजी के अनन्य भक्त श्री अन्नामाचार्य या अन्नमय्या के नाम से प्रसिद्ध हैं जब उन्हें पता चला कि उनका विवाह किससे होगा तो उनकी पूजा करने लगे की यह सृष्टि की कितनी सुंदर रचना है ? संक्षिप्त में हम यह कथा कहें तो एक बार भगवान एक सन्यासी के रूप में अन्नामाचार्य से मिलने आते हैं और उनसे कहते हैं कि यदि मैं तुम्हें इनसे भी  सुंदर व्यक्ति दिखाऊं तो तुम क्या करोगे ? तो अन्नामाचार्य कहते हैं मैं उनका दास बन जाऊंगा। तब सन्यासी के रूप में भगवान उनको मंदिर में लेकर आते हैं मंदिर में प्रवेश करने से पहले उन्हें एक ऐसा चित्र दिखता है जैसा चित्रण खजुराहो के मंदिर में है, तो वह कहते हैं यहां तो मंदिर में भी वही दृश्य है तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि जो मैं करता था वह गलत था? तब भगवान जो साधु रूप में थे कहते हैं कि यह वह क्रिया है जो दूसरा जीवन प्राप्त कराती है प्राप्त कराती है यह कोई इंद्रिय लंपटता या भोग नहीं है। तो हस्तमैथुन का कोई सपोर्ट नहीं है। तब भीतर जाने पर भगवान उनको अपना रूप दिखाते हैं जिसे देख कर अन्नामाचार्य उनके शरणागत  हो जाते हैं अर्थात जब बाहर का आकर्षण हटा तब भीतर का परमात्मा मिला। और पंचतंत्र की किताबों को आधार बनाकर वो यह बताना चाहते हैं कि वैदिक गुरुकुल में कामशास्त्र पढ़ाया जाता था और बच्चे उसके लिए बहुत ही उत्सुक रहते थे। जबकि पंचतंत्र हमें वैल्यूज़ और नैतिकता सिखाने के लिए काल्पनिक कहानियों की एक किताब है वह कोई एक शास्त्र नहीं है।  किस तरह का मानसिक दिवालियापन है यह और हमारे शास्त्रों में क्या केवल कामशास्त्र ही है ? कामसूत्र ही है ? हमारे शास्त्रों में हमारी चार वेद हैं , 108 उपनिषद हैं , 18 पुराण हैं, स्मृतियां हैं, रामायण है, महाभारत है अनेकों अनेक शास्त्र हैं। सभी के सभी वीर्य रक्षा और ब्रह्मचर्य की महिमा से भरे हुए हैं और यह कहते हैं कि हस्तमैथुन नॉर्मल है सामान्य स्वस्थ प्रक्रिया है. ऊँट कँटीली झाड़ियां खाता है उसमें उसे स्वाद आता है। वास्तव में स्वाद झाड़ियों में नहीं होता, झाड़ियों के कांटो से उसकी जीभ व मसूड़ों से खून निकलता है। झाड़ियों को वह चबा चबा कर खाता है और रक्त का स्वाद उसे कांटों के साथ आता है तो कांटों के साथ रक्त का स्वाद मिलने से वह सोचता है कि झाड़ियों से स्वाद मुझे मिल रहा है और इस तरह जीवन भर अपना ही खून पीता रहता है। इसी तरह से हस्तमैथुन में आने वाला आनंद भी कुछ ऐसा ही है जो मन को शुरू में सुख देता है पर शारीरिक और मानसिक बल को क्षीण करता जाता है।  फिल्म में कैरेक्टर कहता है कि हमारे शास्त्रों में लिंग, योनि, नितम्ब, वक्षस्थल शब्द आते हैं तो हम बहुत प्रोग्रेसिव थे। तो मतलब इन्द्रिय-लम्पट  होना सही है ? कितना बौद्धिक दिवालियापन है।  शास्त्रों में जो यह शब्द आते हैं वह किस संदर्भ में आते हैं ? इंद्रिय संयम के बारे में अर्थात मन और इंद्रियों को संयमित करें कामवासना पर विजय पायें, वह इन्द्रिय-लम्पट या हस्तमैथुन का जस्टिफिकेशन नहीं दिया गया है।  अरे नाक को नासिका कहेंगे हैंड को हाथ कहेंगे हिप्स को नितम्ब कहेंगे,  तो उस समय की जो भाषा थी तो वही शब्द उपयुक्त प्रयुक्त होंगे। इसलिए यह लोग कहीं पर कोई श्लोक नहीं बता पाए उनका कहना है कि मैकॉले ने देखा कि गुरुकुल में कामशास्त्र पढ़ाया जाता था जिससे भारत बहुत प्रगति कर रहा है तो भारत की प्रगति को रोकने के लिए मैकॉले ने भारत के गुरुकुल बंद करवा दिए और भारत के गुरुकुल से काम शास्त्र को उठाकर अपने देश लेकर गया और वहां इसका ज्ञान देखकर अपने देश को डेवलप कर दिया किंतु सच्चाई यह है कि मैकॉले ने कहा था कि यदि भारत को जीतना है तो इसकी बैकबोन (रीढ़ की हड्डी) इसकी आद्ध्यात्मिक वैदिक धरोहर  जो कि गुरुकुल सिस्टम है इसको नष्ट करना होगा।  क्योंकि गुरुकुल में काम-क्रोध-लोभ जैसे विकारों को दूर करना, संयम में रहना सिखाया जाता था ना कि कामवासना को बढ़ाए जाने की शिक्षा दी जाती थी। और यदि फिल्म मेकर यही कहना चाहते हैं कि गुरुकुल की शिक्षा पद्धति अच्छी है तो आयुर्वेद और हमारे शास्त्र क्या कहते हैं इस बारे में वह भी सुन लीजिए सनातन संस्कृति में जो चार आश्रम हैं उन सब में पहला आश्रम है ब्रह्मचर्य आश्रम उसमें 25 वर्षों तक ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करने के लिए जोर दिया जाता था और जिस काम-काम-काम या वासना कि ये लोग बात कर रहे हैं उसे नियंत्रित करने के लिए कहा जाता था। वीर्य रक्षा की शिक्षा दी जाती थी ना कि इसको नाश करने की यानी कि हस्तमैथुन बिल्कुल भी नॉर्मल नहीं बल्कि बहुत बड़ी गलती है।  क्यों ? क्योंकि विद्यार्थी जीवन की तो नींव ही ब्रह्मचर्य है "चरक संहिता" ले लीजिए पतंजलि की योग पद्धति ले लीजिए महान ऋषि वाग्भट्ट की “अष्टांग ह्रदयम्”  आदि जो भी शास्त्र हैं वो ले लीजिए सभी जगह यही मिलेगा।  आयुर्वेद के आचार्य वाग्भट्ट कहते हैं कि संसार में जितना सुख है वह आयु के अधीन है यानी आयु होगी तभी तो सुख भोगेंगेऔर आयु ब्रह्मचर्य के अधीन है। चरक संहिता में श्लोक आता है - 

              सत्तमुपासनाम् सम्यगास्ताम् परिवर्जनम् 

              ब्रह्मचर्योपवासचश्च नियमाश्च पृथग्विधा

 सज्जनों की सेवा दुर्जनों का त्याग और ब्रम्हचर्य का पालन, धर्मशास्त्र के नियमों का ज्ञानाभ्यास, आत्म कल्याण का मार्ग है।  चरक संहिता में चरक ऋषि ब्रह्मचर्य की महिमा गाते हुए कहते हैं कि ब्रम्हचर्य को सांसारिक सुख ही नहीं बल्कि मैं तो मोक्ष का भी साधन कहता हूँ। वे कहते हैं कि गुरुकुल आने पर विद्यार्थियों की सबसे पहली प्रतिज्ञा होती थी कि मैं जीवन भर ब्रह्मचारी रहूंगा। चरक संहिता में स्वस्थ जीवन के तीन स्तंभ बताए गए - योग्य आहार, निद्रा और ब्रम्हचर्य। तो चरक संहिता तो बार-बार ब्रह्मचर्य की महिमा गाती है और गीता का जो श्लोक उन्होंने फिल्म में बोला कि भगवान श्रीकृष्ण ने बोला कि मैं काम हूँ  तो सुनिए भगवद्गीता के 7 वें अध्याय के ११ वें श्लोक में भगवान कहते हैं -

धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ अर्थात हे अर्जुन ! मैं वह काम हूं जो धर्म के विरुद्ध नहीं है अर्थात जो विवाह संस्कार के अंतर्गत आता है वह धर्म के अनुकूल है उसमें गर्भाधान संस्कार के द्वारा संतान उत्पन्न करने की जो क्रिया है वह भगवान हैं।  उस संबंध में संतान उत्पन्न करने के लिए जो काम क्रिया है वह भगवान हैं  क्योंकि संतान उत्पन्न करने के लिए भी शक्ति चाहिए जो भगवान से मिलती है।  हमारे शास्त्रों में 16 संस्कार बताए गए हैं जिनमें विवाह एक संस्कार है और कैसी चेतना कैसे विचारों का जीव मां के गर्भ में आए उसके लिए एक संस्कार है जिसका नाम है गर्भाधान संस्कार। जिसकी पूरी विधि है जो बहुत पवित्र है। किंतु हमारी संस्कृति में हस्तमैथुन संस्कार तो कहीं पर भी नहीं बताया गया  जो आज ये नॉर्मल बता रहे हैं। तो शास्त्रों को लेकर झूठी बातें क्यों फैलाई जा रही है ? बर्बादी के रास्ते पर बच्चों को आगे क्यों बढ़ाया जा रहा है ? जहां से उसे बचाना चाहिए उसको वहीं धकेला जा रहा है वह भी भगवान और संस्कृति का नाम लेकर। उसी को जस्टिफाइड किया जा रहा है आखिर क्यों ? गीता में अर्जुन भगवान से पूछते हैं कि मनुष्य ना चाहते हुए भी पाप क्यों करता है ? क्या कारण है ? तो भगवान कहते हैं कि इसका कारण रजोगुण के संपर्क से उत्पन्न काम है जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है।  इसका मतलब यह कि कामवासना का कभी पेट नहीं भरता जितना करोगे उतना बढ़ता जाएगा जैसे अग्नि में घी डालते जाइए उतनी ही वह भड़कती जाएगी  आप सब ने देखा होगा कुछ लोगों को आप जानते ही होंगे कि एक सीमा पर बच्चे एडिक्ट हो जाते हैं और पोर्न देखे बिना नींद नहीं आती और सबसे कमाल की बात की कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि यह नेचुरल है लेकिन नेचुरल तो मलमूत्र का विसर्जन है जो आप रोक नहीं सकते आपको जाना ही पड़ता है लेकिन यह तो आप जबरदस्ती कुछ गन्दा चिंतन करके करते हैं यह हस्तमैथुन करके आप स्वयं को कमजोर करते हैं तो यह स्वाभाविक कैसे है ? जरा सोचिए जब कोई ऐसा करता है तो क्या  जब कोई ऐसा चिंतन करता है तो क्या वह पेड़ लकड़ी घर बिल्डिंग या अपनी परीक्षा के बारे में सोचता है अपने एग्जाम के बारे में सोचता है परीक्षा परिणाम के बारे में सोचता है नहीं वह विपरीत लिंग के बारे में सोचता है और वह भी गलत व्यवहार की कल्पना करता है तो इस कृत्य को बढ़ावा देकर क्या हम अपने बच्चों को बच्चियों को सुरक्षित रख रहे हैं कि एक दूसरे के बारे में गलत विचार कर सकते हो और अपना वीर्य नाश कर सकते हो क्या यही एजुकेशन देकर हम अपनी जनरेशन को सुरक्षित करेंगे शिव संहिता में स्वयं भगवान शंकर कहते हैं :- सिद्धे बिन्दौ महादेवि किं न सिद्धयति भूतले --
 'हे पार्वती ! बिन्दु अर्थात वीर्यरक्षण सिद्ध होने के बाद कौन-सी सिद्धि है, जो साधक को प्राप्त नहीं हो सकती? और आगे उन्होंने कहा कि इसके प्रताप से ही मेरी ऐसी महिमा हुई है ब्रह्मचर्य अत्यंत उत्कृष्ट तप है इससे बढ़कर तपश्चर्या तीनों लोकों में दूसरी नहीं हो सकती और फिल्म में तो प्रमुख पात्र ही वीर्य नाश को ही नॉर्मल बताता है। 
जैन शास्त्र कहते हैं कि ब्रह्मचर्य समस्त तपों में सर्वोत्तम है। अथर्ववेद कहता है कि  व्रतेषु वै वै ब्रह्मचर्यम् - ब्रह्मचर्य उत्कृष्ट व्रत है। तो इस प्रकार महाभारत, चरक संहिता, शिवपुराण, पतंजलि योग सभी हमारे शास्त्र ब्रह्मचर्य की महिमा कहते हैं ना कि हस्तमैथुन को स्वाभाविकऔर सही बताते हैं। गीता में तीसरे अध्याय के अंतिम श्लोक में भगवान कहते हैं कि अर्जुन जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।। अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा कामरूपी इस दुर्जय शत्रु को जीतो। यानी सेक्स एजुकेशन की नहीं आध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता है और स्कूल कॉलेज में सब जगह आवश्यकता है। शास्त्र भरे पड़े हैं ब्रह्मचर्य की महिमा से आप खुद देख सकते हैं रिसर्च कर सकते हैं तो यदि आप हमसे ये पूछें कि हम इतना क्यों इस बारे में बोल रहे हैं ऐसा क्या है वीर्य में और अब भी आपके मन में यह प्रश्न है कि  किस किसकी सुनें और अगर हमने ब्रह्मचर्य का पालन किया तो इससे क्या होगा तो सुश्रुत संहिता के अनुसार उसमें कहा गया है - 
                                             रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसाद मेद: प्रजायते 
                                             मेदादस्थि ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसम्भव:
मतलब  कि जो हम भोजन करते हैं उससे सबसे  पहले रस बनता है  जिसे आज की साइंस प्लाज्मा कहती है।  5 दिन तक जब शरीर उसको पचा लेता है तो उससे रक्त बनता है फिर 5 दिन बाद इस रक्त से मज्जा  यानी हमारे मसल्स बनते हैं इसी से हमारी बॉडी का स्ट्रक्चर बनता है  फिर उससे बनती है मेधा  यानी healthy fat tissues हेल्दी  फैट टिश्यूस जो हमारे शरीर के अंदर एनर्जी स्टोरेज का काम करते हैं जिससे हमें शक्ति मिलती है फिर इस एनर्जी यानी मेधा का इस्तेमाल करके अस्थि यानी हड्डियां बनती है और जब हमारी बॉडी हड्डियां बना लेती है तो इससे बनता है बोन मैरो और उससे बनती है शुक्र धातु यानी वीर्य जो कि मेल और फीमेल दोनों के शरीर में होता है पुरुष के शरीर में वीर्य और स्त्री के शरीर में रज कहलाता है। इसीलिए आयुर्वेद के अनुसार यह शरीर का सबसे शुद्ध स्वरूप है क्योंकि इसमें एक नया जीवन देने की शक्ति होती है और आधुनिक विज्ञान भी इसे सही मानता है कि हां ऐसा ही होता है।  लेकिन यदि हम पूछें कि क्या हम अपने शरीर में से रोज केवल 10 ग्राम खून निकाल कर फेंक दें तो क्या यह सही होगा तो सभी इस पर गुस्सा करेंगे और कहेंगे यह क्या कर रहे हो मूर्ख हो ? क्या तुम्हारा दिमाग खराब है ? कुछ दिनों में तुम्हारे सारे फेल हो जाएंगे तुम मर भी सकते हो। यदि हम ऐसे ही हड्डियों और बोन मैरो को बर्बाद करने की बात करेंगे तो एक्सपर्ट हमें कभी भी यह बेवकूफी नहीं करने देंगे लेकिन जब बात वीर्य की आती है तो फिर वह नॉर्मल या स्वाभाविक कैसे हो जाता है ? वह स्वस्थ प्रक्रिया कैसे हो जाती है ? सोचिएगा।  
               आयुर्वेद के अनुसार रक्त की 80 बूंदों से 30 दिन 4 घंटे में एक बूंद वीर्य बनता है अब आप खुद ही सोचिए कि यदि 80 बूंद खून प्रतिदिन बहाना नुकसानदायक हो सकता है तो इसी खून से बने फाइनल प्रोडक्ट यानी Semen या वीर्य को यूँही  दिन में कितनी ही बार बहाना कितना सही और स्वस्थ है ? इससे हमारे शरीर को कितना नुकसान होता होगा ? खुद सोचिए ...  इस सब के पीछे एक बहुत बड़ा propaganda है जिससे हम सभी अनजान हैं और धीरे-धीरे इसके शिकार हो रहे हैं और आँख तब  खुलती है जब इसका एडिक्शन या लत पड़ जाती है। और ऐसी फिल्म के माध्यम से हमें आपको ऐसे माया जाल में फंसाया जा रहा है और हमारा पैसा खींचा जा रहा है। जबकि वीर्य शरीर में रहने से फोकस बढ़ता है इंटेलिजेंस है एक्यूट होती है मेमोरी शार्प होती है व्यक्ति उत्साह व आत्मविश्वास से लबालब भरा हुआ रहता है। विल पावर यानी इच्छाशक्ति इतनी  स्ट्रांग हो जाती है कि पर्वतों को भी हिला दें और जिन्हें अभी भी  confusion है तो उनके लिए कहा गया है कि जब कुछ लोग कहें कि बाहर बारिश हो रही है और कुछ कहें कि बाहर बारिश नहीं हो रही तो खुद बाहर जा कर देख लेना चाहिए कि बारिश हो रही है कि नहीं क्योंकि खुद के अनुभव से बड़ा शिक्षक कोई नहीं होता। प्रमाण आपको खुद मिल जाएगा और आयुर्वेद कहता है कि जब कोई इंसान वीर्य का नाश करता है तो इससे तीन प्रकार की समस्याएं आती हैं शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक।  शारीरिक समस्या में एक मनुष्य अनुभव करता है कि उसका शरीर धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है उसका पाचन तंत्र कमजोर हो रहा है उसकी आंखें उसका पाचन तंत्र कमजोर हो रहा है उसकी मसल मांसपेशियों की बढ़ोतरी रुक जाती है छोटी सी उम्र में ही चेहरे पर झुर्रियां आना ageing problems आने लगती हैं  वहीं  मानसिक समस्याओं में बुद्धि की सोचने समझने की शक्ति कम होने लगती है, सही और गलत के समझ की क्षमता समाप्त होने लगती है, डरा डरा रहता है आत्मविश्वास नहीं रहता, चीजों को याद नहीं रख पाता किसी बात को गहराई से सोच समझ पाना तो भूल ही जाए और वह इन दोनों समस्याओं में जब गिरा रहेगा तो चाह करके भी आध्यात्मिक नहीं हो सकता और पूरा जीवन संघर्ष में बीत जाता है। 
तो अब इसको दूर करने के लिए समाधान क्या है? 
तो पहला समाधान तो यह है कि कामुक और उत्तेजित चीजों को देखना बंद कीजिए दूसरा आहार पर नियंत्रण लाइए मांस अत्यधिक राजसिक भोजन है क्योंकि इससे ताकत नहीं आती चर्बी बढ़ती है प्रधानता  संकल्प शक्ति की है जैसे महात्मा अगस्त्य समुद्र को अपनी अंजली में भरकर पी गए संकल्प शक्ति से तो शरीर की सीमित शक्ति है संकल्प शक्ति महान है। बलवान वह है जो आए हुए वेगों को सह जाए।   तो पहले ऐसा भोजन छोड़ें और जो भी आए उसे भगवान को अर्पित करके खायें   तीसरा अपने जीवन को नियमित करना होगा इसकी शुरुआत करनी होगी सूर्योदय से पहले उठने से। तो 4:00 से 6:00 के बीच में उठ जाएं कुछ आध्यात्मिक अभ्यास कीजिए, गंभीरता से हरे कृष्ण महामंत्र  प्रार्थना के भाव में जपिये और व्यायाम कीजिए प्राणायाम कीजिए।  सांसारिक चीजों  में मन लगाने से अच्छा है कि भगवान की लीलाओं को सुना जाये शास्त्रों को पढ़ा जाए भगवान के दर्शन किए जाएं और यह है कि इसे कृत्रिम रूप से  कंट्रोल नहीं कर सकते। तो किसी भी इच्छा को अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता लेकिन इसे ट्रांसफॉर्म किया जा सकता हैतो यह आदत है लस्ट  और उसका उल्टा है लव अर्थात प्रेम। जब हम भगवान के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं तो हम धीरे-धीरे इस आदत को नियंत्रित कर पाते हैं। और प्रेम सिर्फ भगवान से ही होता है बाकी सब काम है जिसे हमें नियंत्रित रखना है तो क्या आपको अभी भी लगता है कि यह नॉर्मल या स्वाभाविक है और इसे हमारे 12-15 साल के बच्चों को करने देना चाहिए ? यह बहुत बड़ा एडिक्शन है जिसकी कोई दवाई भी नहीं है। कितने बच्चे आज इससे परेशान हैं बेबस है लेकिन इससे उबर नहीं पाते। 18 साल में ही इस लत  जब बच्चा हताश निराश हो जाएगा तो 28 और 30 साल में उसकी क्या हालत होगी और 40 और फिर 50 साल में फिर वह कर ही क्या पाएगा ? कुछ बहुत गलत यह फिल्म कर रही है  और वह भी शास्त्रों का आधार देकर, हमारी संस्कृति का नाम लेकर। और तो और कहीं पर भी एक श्लोक ही नहीं बताया गया है कोई प्रमाण नहीं दिया गया है इस तरह करोड़ों करोड़ों युवाओं को कामवासना की दलदल में धकेल रही है क्या फिल्म वह भी भगवान का नाम लेकर। 
                    कुछ लोग अनजाने में इसे प्रमोट कर रहे हैं लेकिन देखिये अनजाने में भी इस पाप के भागीदार मत बनिए क्योंकि ईश्वर व  हमारे शास्त्र जो बात कहते हैं उससे यह फिल्म एक्जेक्टली ऑपोजिट है। थोड़ी बहुत नहीं शत-प्रतिशत विरुद्ध बात है।  हमारी मात्र प्रार्थना है बाकी सबकी अपनी मर्जी। पर एक बात ध्यान रखें जो मीठी-मीठी बात करते हैं ना इधर-उधर के तर्क देकर हमारी गलतियों को जस्टिफाई करते हैं वह हमें अच्छे लगते हैं जबकि वह हमारे सबसे बड़े शत्रु होते हैं लेकिन जो लोग कान पकड़कर हमारे मुंह पर बोलते हैं वह होते हैं हमारे सच्चे हितैषी। आज अनजाने में यदि आप यह अमूल्य मनुष्य जीवन यूं ही गँवाते हैं तो बाद में भविष्य अंधकार में जब दिखेगा तो आपको उसका सामना खुद ही करना होगा फिल्म के मेकर्स आपको बचाने नहीं आएंगे।  तो प्राप्त विवेक का समादर  कीजिए, सावधान रहिए
 धन्यवाद ! हरे कृष्ण



1 टिप्पणी:

  1. ऐसी फिल्म को सेंसर बोर्ड प्रस्तुत करने की परमीशन ही क्यों देता है और हमारी सरकार इस ओर भी ध्यान क्यों नहीं देती

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